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नवम परिच्छेद
२३५ बिना उतारे मन्दिर में जाना, ३१. अचित द्रव्य - आभूषणादि उतार के जाना, ३२. एक साडी का उत्तरासंग न करे, ३३. भगवान् को देख के हाथ न जोड़े, ३४. शक्ति के हुये पूजा न करे, ३५. अनिष्ट फूलों से पूजा करे, ३६. पूजा प्रमुख आदर रहित करे, ३७. जिनप्रतिमा के निद्रक को हटावे नहीं, ३८. मन्दिर के द्रव्य की सारसंभाल न करे, ३९. शक्ति के हुये भी सवारी पर चढ़ के मन्दिर में जावे, ४०. देहरे में बड़ो से पहिले चैत्यवंदन करे । जितेंद्र भवन में तथा जहां प्रतिमा होवे, तहां यह चालीश मध्यम आशातना टाले ।
अब उत्कृष्ट चौरासी आशातना का नाम कहते हैं । १. जिनमन्दिर में खेल खंखार गेरे, २. जूए आदिक की क्रीड़ा करे, ३. कलह करे, ४. धनुष्यादि कला सीखे, ५. कुरला करे, ६. तंबोल खावे, ७. तंबोल का उगाल गेरे, ८. गाली देने, ९. दिशा मात्रा करे, १०. हस्तादि अंग धोवे, ११. केश समारे, १२. नख समारे, १३. रुधिर गेरे, १४. सुखडी प्रमुख देहरे में खावे, १५. गुमडे आदिक की त्वचा गेरे, १६. औषधि खाके पित्त गेरे, १७. वमन करे. १८. दांत गेरे, १९. हाथ पग मसलावे, २० घोड़ादि वांधे, २१. दांत का मैल गेरे, २२. आंख का मैल गेरे, २३. नख का मैल गेरे, २४. गाल का मैल गेरे, २५, नाक का मैल गेरे, २६. माथे का मैल गेरे, २७. शरीर का मैल गेरे, २८. कान का मैल गेरे, २९. भूतादि के कीलने के वास्ते मंत्र साधे, अथवा राजा प्रमुख का काम होवे तिस