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जैनतरवादर्श लगाना, प्रतिमा का भंग करना, जिनेश्वर देव की अवहेलनादि करना । सो उत्कृष्ट आशातना है। अब देव की जघन्य दश आशातना, अरु मध्यम चालीस आशातना तथा उत्कृष्टी चौरासी आशातना है, सो क्रम करके कहते हैं।
- प्रथम जघन्य दश आशातना न करनी, सो लिखते हैं। जिनमन्दिर में १. पान सोपारी खावे, २. पानी पीवे, ३. भोजन करे, ४. पगरखा पहिरे, ५. स्त्री से संभोग करे, ६. सोवे, ७. थूके, ८. मूत्रे, ९. उच्चार करे, और १०. जूआ खेले। जघन्य से यह दश आशातना जिनमन्दिर में वर्जे।
दूसरी मध्यम चालीस आशातना वर्जे, तिन का नाम कहते हैं । १. मूतना, २. दिशा जाना, ३. अताप हरना, ४. पानी पीना, ५. खाना, ६. सोना, ७. मैथुन सेवना, ८. तंबोल खाना, ९. थूकना, १०. जूआ खेलना. ११. जूंआं देखे, १२. विकथा करे, १३. पालठी से बैठे, १४. जुदा जुदा पग पसारे, १५.झगड़ा करे, १६. हांसी करे, १७. किसी के ऊपर ईर्ष्या करे, १८. ऊंचे आसन पर बैठे, १९. केश शरीर की विभूषा करे, २०. शिर पर छत्र लगावे, २१. खड्ग रक्खे, २२. मुकुट धरना, २३. चामर कराने, २४. स्त्री से काम विलास सहित हांसी करनी, २५. धरना लगाना, २६. क्रीड़ा-खेल करना, २७. मुखकोश के बिना पूजा करनी, २८. मैले शरीर से
और मैले वस्त्रों से पूजा करनी, २९. पूजा करते समय मन को चपल करना, ३०. शरीर के भोग सचित्त द्रव्य को