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नवम परिच्छेद आदि दोष संयुक्त है, अरु अपनी महिमा-पूजा के वास्ते तथा लोगों को ठगने के वास्ते विधिपूर्वक सर्वानुष्ठान करता है, उसको बड़ा अनर्थ फल होता हैं, यह रुपया खोटा, अरु सन् खरा के समान तीसरा मेद जानना। तथा अज्ञानी मिथ्यादृष्टि जीव का जो कृत्य है, सो तो रुपया मी खोटा अरु सन् भी खोटा के समान चौथा मेद है। इस वास्ते जो देवपूजादिक करण को वहुमान अरु विधिपूर्वक करे, उसको संपूर्ण फल होता है। तथा उचित चिंता से मंदिरप्रमार्जन करना। जिस जगे
से मन्दिर गिर कर बिगड़ गया होवे, उस जिनमन्दिर की का समराना, प्रतिमा, प्रतिमा के परिवार सारसभाल को निर्मल करना; विशिष्ट पूजा दीपोत्सव
__फूल प्रमुख की शोभा करना तथा जो आगे लिखेंगे सो सर्व आशातना वर्जना; तथा अक्षत, नैवेद्यादि की चिंता करना, चंदन, केसर, धूप, दीप, तेल का संग्रह करना। विनाश न होवे, ऐसी रीति से चैत्यद्रव्य की रक्षा करे। तीन चार श्रावकों के सामने देवद्रव्य की उघराणी करे। देवद्रव्य को बहुत यल से अच्छी जगे स्थापन करे । देवद्रव्य के लाभ अरु खरच का नाम प्रगटपने लिखे । आप तथा औरों से देवद्रव्य देवे, देवावे । देवद्रव्य किसी पासों - लेना होवे, तहां देव के नौकर को भेज कर जिस रीति से देवद्रव्य जावे नहीं, तैसे करे। उधराणी के वास्ते नौकर