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जैनतत्वादर्श
शेष पहिले अनुष्ठान
शुद्ध विवेकवाला होवे, अरु वाकी की तरे करे, सो भक्ति अनुष्ठान है । यद्यपि स्त्री का अरु माता का पालनपोषण एक सरिखा है,
तो भी स्त्री पर
यह प्रीति अरु
प्रीतिराग है, अरु माता पर भक्तिराग है । भक्ति का स्वरूप कहा है । तथा जो जिनेश के गुण का जानकार सूत्रोक्त विधि से जिनप्रतिमा को वन्दना करे, सो वचनानुष्ठान है । यह अनुष्ठान चारित्रवान् को निश्चय करके होता है । तथा जो अभ्यास के रस से सूत्रालोचना के बिना ही फल में निःस्पृह हो कर करे सो असंगानुष्ठान है । जैसे कुंभार चक्र को पहिले तो दण्ड से फिराता है, पीछे से दण्ड दूर करे, तो भी चक्र फिरता है । यह दृष्टांत वचनानुष्ठान अरु असंगानुष्ठान में है ।
इन चारों में प्रथम तो भावना के लेश से प्रायः वालक प्रमुख को होता है । आगे अधिक अधिक जान लेना । यह चारों प्रकार का अनुष्ठान वहुमान विधिसंयुक्त करे । तो रुपया भी खरा अरु खरे सन् के समान, प्रथम मेद है । दूसरा जो पुरुष, भक्तिराग बहुमान संयुक्त होवे, अरु विधि जानता न होवे, तिस का कृत्य एकांत दुष्ट नहीं । अशठ — सरल पुरुष का अनुष्ठान अतिचार सहित भी शुद्धि का कारण है, क्योंकि जो रतन अन्दर से निर्मल है, उसका बाह्य मल सहन में दूर हो सकता है। यह रुपया तो खरा, परंतु सन् खोटा के समान दूसरा भेद है । तथा जो पुरुष कपट, झूठ