________________
૨૨૮
जैनतस्वादर्श
यास्याम्यायतनं जिनस्य लभते ध्यायंश्चतुर्थं फलम्, षष्ठं चोत्थित उद्यतोऽष्टममथो गन्तुं प्रवृत्तोऽध्वनि । श्रद्धालुर्दशमं बहिर्जिनगृहात्प्राप्तस्ततो द्वादशं, मध्ये पाक्षिकमीक्षते जिनपतौ मासोपवासं फलम् ॥
पद्म चरित्र में तो ऐसा लिखा है कि, १. जिनमन्दिर में जाने का मन करे, तब एक उपवास का फल होता है, २. यदि उठे, तो वेले का फल होता है, ३. चल पड़ने के उद्यमी को तेले का फल होता है, ४. चल पड़े, तो चौले का फल, ५. किञ्चित् गये को पंचौले का फल, ६. अर्ध मार्ग में गये को एक पक्ष के उपवास का फल होता है, ७. जिनराज को देखने से एक मास के तप का फल होता है, ८. जिनभुवन में संप्राप्त हुए को छमासी तप का फल होता है, ९. जिनमंदिर के दरवाजे पर स्थित हुए को एक वर्ष के तप का फल होता है. १० जिनराज को प्रदक्षिणा देने से सौ वर्ष के तप का फल होता है, ११. पूजा करे तो हज़ार वर्ष के तप का फल होता है, १२. स्तुति करे तो अनंतगुण फल होता है, १३. जिनमन्दिर पूजे, तो सौ गुणा पुण्य होता है, १४. लींपे, तो हज़ार गुणा पुण्य होता है, १५. फूलमाला चढ़ावे, तो लाखगुणा पुण्य होता है, १६. गीत वामित्र पूजां करे, तो अनंतगुणा पुण्य होता है ।
पूजा प्रतिदिन तीन संध्या में करनी चाहिये । यतः -