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नवम परिच्छेद
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मकड़ी का जाला होवे,
तिसके दूर करने के वास्ते सेवकों
को प्रेरणा करे कि, तुम जिनमन्दिर को मंखफलक की तरे
चमक दमकवाला रक्खो । जेकर वे सेवक लोग न मानें, तब निर्भर्त्सना करे, और पीछे साधु जयणा से आप दूर करे । तात्पर्य कि, जिनमन्दिर और ज्ञानभण्डारादि की सर्वथा साधु भी उपेक्षा न करे ।
यह पूर्वोक्त चैत्यगमन, पूजा, स्नानादि विधि जो कही है, सो सब धनवान् श्रावक की अपेक्षा कही है । अरु जो श्रावक धनवान् न होवे, वो अपने घर में सामायिक करके किसी के साथ लेनेदेने का झगड़ा न होवे, तो उपयोग संयुक्त साधु की तरे ईर्या को शोधता हुआ तीन नैषेधिकी करी भाव पूजानुयायी विधि से जावे। पूजादि सामग्री के अभाव से द्रव्यपूजा करने में असमर्थ है, इस वास्ते सामायिक पार के काया से जो कुछ फूल गुंथनादिक कृत्य होवे सो करे ।
प्रश्नः -- सामायिक त्याग के द्रव्यपूजा करनी उचित नहीं ! उत्तरः- सामायिक तो तिसके स्वाधीन है, चाहे जिस वक्त कर लेवे । परन्तु पूजा का योग उसको मिलना दुर्लभ है। क्योंकि पूजा का मंडाण तो संघ समुदाय के अधीन है, और वह कभी २ होता है। इस वास्ते पूजा में विशेष पुण्य है । यदागम: