________________
२२०
जैनतस्वादर्श
कर्पूरादिक से करे, विशेष फल होने से। यहां मुक्कालंकार इत्यादि जो गाथा है, सो श्री हरिभद्रसूरिजी की करी हुई मालूम होती है । क्योंकि श्री हरिभद्रसूरिकृत समरादित्य चरित्र नामक ग्रंथ की आदि में " उवणेउ मंगलं वो " इस प्रकार नमस्कार किया देखने में आता है । तथा यह गाथा तपगच्छ में प्रसिद्ध है, इस वास्ते सर्व गाथा इहां नहीं लिखी ।
स्नानादिक में सामाचारी विशेष से विविध प्रकार की विधि के देखने से व्यामोह नहीं करना, क्योंकि सर्व आचार्यों को अर्हद्भक्तिरूप फल की सिद्धि के वास्ते ही प्रवृत्त होने से, गणधरादि सामाचारियों में भी बहुत भेद होता है । तिस वास्ते जो धर्म से विरुद्ध न होवे, अरु अत मक्ति का पोषक होवे, वो कार्य किसी को भी असम्मत नहीं । ऐसे ही सर्व धर्मकार्य में जान लेना । यहां लवण, आरति प्रमुख का उतारना संप्रदाय से सर्व गच्छों में अरु परदर्शनों में भी करते हुवे दीखते हैं। तथा श्रीजिनप्रभसूरिकृत पूजाविधि शास्त्र में तो ऐसे लिखा है
--
लवणाइउचारणं, पालित्तयसूरिमा इव पुरिसेहिं । संहारेण अणुनापि, संपयं सिट्टिए कारिज ||
अर्थः-- लवणादि उतारना श्रीपादलिप्तसूरि प्रमुख पूर्व पुरुषों ने एक वार करने की माज्ञा दीनी है । हम इस
t