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नवम परिच्छेद यह पढ़ कर प्रथम कुसुमवृष्टि करे । अनन्तर
उअह पडिभग्गपसरं, पयाहिणं मुणिवई करेऊणं । पडइ स लोणचेण, लजि व लोणं हुअवहमि ॥
इत्यादि पाठ से विधिपूर्वक जिनराज के तीन वार फूल सहित लवण जल उत्तरणादि करना। तिस पीछे अनुक्रम से पूजा करके आरात्रिक धूपोपक्षेप सहित दोनों पासे कलश के पानी की धारा देते हुए श्रावक फूलों को बखेरे । और
मरगयमणिपडियविसालथालमाणिकमंडिअपईवं । ण्हवणयरकरुखितं, भमउ जिणारतिअंतुम्ह ।।
इत्यादि पाठपूर्वक प्रधान भाजन में रख के उत्सव सहित तीन वार उतारे। यह कहना नेसठ शलाका पुरुष चरित्रादिक में है। मंगल दीपक को भी आरति की तरें पूजे, और यह पाठ पढे
मामिजंतो सुरसुंदरिहिं तुह नाह ! मंगलपईवो। कणयायलस्स नजद, माणुष्व पयाहिणं दितो ॥
इस पाठ पूर्वक मंगलदीवा उतार के दीप्यमान जिनचरणों के आगे रख देना। आरति को बुझा देने में दोष नहीं | आरति अरु मंगलदीवा मुख्यवृत्ति से घृत, गुड़,