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नवम परिच्छेद
२१५ फूलों से जिनेश्वर देव की पूजा नहीं करनी। तथा विस्तार सहित पूजा के अवसर में, तथा नित्य, अरु विशेष करके पर्वदिन में, सात तथा पांच कुसुमाञ्जलि चढावे । पीछे मग. वान् की पूजा करे । तहां यह विधि करे। प्रभाव समय पहिले निर्मात्य उतारे । पीछे प्रक्षाल
करे, संक्षेप से पूजा करे, आरति मङ्गल दीवा स्नानविधि करे । पीछे स्नात्रादि विस्तार सहित दूसरी
वार पूजा का प्रारम्भ करे। तब देव के आगे केसर जल संयुक्त कलश स्थापन करे। पीछे यह आर्या कह कर अलंकार उतारे:
मुक्तालङ्कारविकारसारसौम्यत्वकांतिकमनीयम् । सहजनिजरूपनिर्जितजगत्त्रयं पातु जिनवित्रम् ।। पीछे यह कह कर निर्माल्य उतारेःअवणि कुसुमाहरणं, पयइपइडियमनोहरच्छायं । जिणरूवं मजणपीठसंठियं वो सिवं दिसउ ।
पीछे प्रागुक्त कलग ढालन और पूजा करे, कलश धो कर, धूप दे कर, उनमें स्नात्र योग्य सुगंध जल का प्रक्षेष करे। पीछे श्रेणीवन्ध स्थापन करे हुए वे कलश सुन्दर वस्त्र से ढक देने । साधारण केसर, चंदन, धूप करके हाथ पवित्र करे। मस्तक में तिलक, हाथ में चंदन का कंकण करे,