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जैनतरवादर्श
निष्फल होवे । ३२. पद्मासन बैठ के, नासाग्र लोचन स्थापन करके मौन धारी हो कर वस्त्र से मुखकोश करके जिनराज की पूजा करे ।
अथ इक्कीस प्रकार की पूजा का नाम लिखते हैं१. स्नात्रपूजा, २. विलेपनपूजा, ३. आभरणपूजा, ४. फूल, ५. वासपूजा, ६. धूप, ७. प्रदीप, ८. फल, ९. अक्षत, १०. नागरवेल के पान, ११. सोपारी, १२. नैवेद्य, १३. जलपूजा, १४. वस्त्रपूजा, १५. चामर, १६. छत्र, १७. वार्जिन, १८. गीत, १९. नाटक, २० स्तुति, २१. भंडारवृद्धि । यह इक्कीस प्रकार की पूजा है । जो वस्तु बहुत अच्छी होवे, सो जिनराज की पूजा में चढ़ानी चाहिये। यह पूजा प्रकार, श्री उमास्वाति वाचककृत पूजाप्रकरण में प्रसिद्ध है ।
तथा ईशान कोण में देवधर बनाना यह बात विवेक विलास में है । तथा विषमासन बैठ के, पग ऊपर पग धरके, उकडु आसन बैठ के, वाम पग ऊंचा करके तथा वाम हाथ से पूजा न करे। सूखे हुए फूलों से पूजा न करे, तथा जो फूल धरती में गिरे होंवें, तथा जिनकी पांखडी सड़ गई होवे, नीच लोगों का जिन को स्पर्श हुआ होवे, जो शुभ न होवें, जो विकसे हुए न होवें, जो कीड़े ने खाये हुए, सड़े हुए, रात को वासी रहे, मकड़ी के जालेवाले, जो देखने में अच्छे न लगें, दुर्गन्धवाले, सुगंध रहित, खट्टी गन्धवाले, मलमूत्र की जगा में उत्पन्न हुए होवें, अपवित्र करे हुए; ऐसे