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________________ २११ नत्रम परिच्छेद करावे अरु अनुमोदे । यह तीन तरें से पूजा है। तथा एक फक, दूसरा नैवेद्य, तीसरी थुई अरु चौथी प्रतिपति, सो वीतराग की आज्ञा पालनरूप | यह चार प्रकार से यथाशक्ति पूजा करे । ललितविस्तरादिक ग्रंथों में पुष्पामिपस्तोत्रप्रतिपत्तिपूजानां यथोत्तरं प्राधान्यमित्युक्तम् " अर्थात् फूल, नैवेद्य, स्तोत्र अरु आज्ञा आराघनीय, ये उत्तरोत्तर प्रधान हैं; ऐसा कहा है। यह आगमोक्त पूजा के चार भेद हैं । 81 तथा पूजा दो प्रकार की है । एक द्रव्य पूजा, दूसरी भाव पूजा । जो फूलादिक से जिनराज की पूजा करनी सो द्रव्य पूजा है। दूसरी श्रीजिनेश्वर की आज्ञा पालनी, सो भावपूजा है । तथा पुप्पारोहण, गंधारोहण इत्यादि सतरह मेद से तथा स्नात्रविलेपनादि इक्कीस भेद से पूजा है । परन्तु अंगपूजा, अग्रपूजा अरु भावपूजा, इन तीनों पूजाओं में सर्व पूजाओं का अंतर्भाव है । तिन में पूजा के सतरह मेद लिखते हैं: -- १. स्नान करना, निनप्रतिमा को विलेपन करना, २ . चक्षु जोड़ा, वास सुगंध चढ़ाना, ३. फूल चढ़ाने, ४. फूल की माला चढ़ानी, 8. पंच रंगे फूल चढ़ाने, ६. भीमसेनी वरास प्रमुख का चूर्ण चढ़ाना. ७. आभरण चढ़ाने, ८. फूलों का घर करना, ९ फूलपगर - सो फूलों का ढेर करना, १०. आरति, मंगल दीवा, ११. दीपकपूजा, १२. धूपोपक्षेप, १३. नैवेद्य,
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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