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________________ २१० जैन तत्त्वादर्श श्रीमहंत की तीन अवस्था की कल्पना करे । उसमें स्नान करती वक्त छद्मस्थ अवस्था की कल्पना करे । तथा आठ प्रातिहार्य की शोभा करते हुए केवली अवस्था की कल्पना करे तथा पर्यंकासन कायोत्सर्गासन देखके सिद्धावस्था की कल्पना करे, इस में छद्मस्था अवस्था तीन तरह की कल्पे । एक जन्माबस्था, दूसरी राज्यावस्था, तीसरी साधुपने की अवस्था । तहां स्नान के वक्त जन्म अवस्था कल्पे, तथा माला, फूल, आभरण पहिराने के वक्त राज्यावस्था कल्पे, तथा दाढी, मूंछ, शिर के बालों के न होने से साधु अवस्था को विचारे, इनमें साधु, केवली, मोक्ष अवस्था को वंदना करे । | तहां पूजा पंचोपचार सहित अष्टोपचार सहित, अरु धनवान् होवे, तो सर्वोपचार से पूजा करे । विविध पूजा तहां फूल, अक्षत, गंध, धूप अरु दीप से पूजा करे, सो पंचोपचार पूजा जाननी । तथा फूल, अक्षत, गंध, दीप, धूप, नैवेद्य, फल अरु जल, यह अष्टोपचार पूजा है । सो अष्टविध कर्म को मथनेवाली है । तथा स्नात्र, विलेपन, वस्त्र, आभूषणादिक, फल, दीप, गीत, नाटक, आरति आदिक करे, सो सर्वोपचार पूजा है । इति बृहद्भाष्ये । तथा पूजा के तीन मेद हैं। एक आप ही काया से पूजा की सामग्री लावे, दूसरी बचनों करके दूसरों से मंगवावे, तीसरी मन करके भला फूल, फल प्रमुख करी पूजा करे । ऐसे काया, वचन अरु मन, इन तीनों योगों से | करे,
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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