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नवम परिच्छेद नैवेद्य का चढ़ाना, आरति करनी आदि आगम में भी लिखा है। " कीरइ वलि" ऐसा पाठ आवश्यक नियुक्ति में है। तथा निशीथचूर्णी में भी बलि चढ़ानी लिखी है। तथा कल्पभाष्य में भी लिखा है कि, जो जिनप्रतिमा के आगे चढ़ाने के वास्ते नैवेद्य करा है, सो साधु को न कल्पे । तथा प्रतिष्ठाप्राभूत से रची हुई श्रीपादलिप्त आचार्यकृत प्रतिष्ठापद्धति में भी लिखा है कि, आरति उतारनी; मङ्गलदीवा करके पीछे चार स्त्री मिल कर गीतगान विधि से करें । तथा च महानिशीथे तृतीये अध्ययने
अरिहंताणं भगवंताणं गंधमल्लपईवसंमञ्जणोवलेषणविचिचवलिवस्थधृवाइएहिं पूआसकारेहिं पइदिणमन्मचणपि कुवाणा वित्थुच्छप्पणं करेमी ति । भावपूना जो है, सो द्रव्यपूजा का व्यापार है, विस
के निषेधने वास्ते तीसरी निस्सही तीन वार भावपूजा करे । श्रीजिनेश्वरजी के दक्षिण के पासे
पुरुष अरु वामी दिशा में स्त्री रह कर, आशातना टालने के वास्ते मन्दिर में भूमि के संभव हुये, जघन्य नव हाथ प्रमाण, अरु घर देहरे में जघन्य एक हाथ प्रमाण अरु उत्कृष्ट से तो साठ हाथ प्रमाण अवग्रह है। तिससे वाहिर बैठ के चैत्यवंदना, विशिष्ट कान्यों करके करे । श्री निशिथ में तथा वसुदेवहिडि में तथा अन्य शास्त्रों में श्रावकों