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नवम परिच्छेद
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दुकूलादि वस्त्र पहिरावें । तथा १. ग्रंथिम, २. वेष्टिम, ३. पूरिम, ४. संघातिमरूप चतुर्विध प्रधान अम्लान विधि से लाया हुआ शतपत्र, सहस्रपत्र, जाई, केतकी, चंपकादि विशेष फूलों करी माला, मुकुट, सेहरा, फूलघरादिक की रचना करे । तथा जिनजी के हाथ में बिजोरा, नारियल, सोपारी, नागवल्ली, मोहर, रुपया, लड्डु प्रमुख रखना । अरु धूपक्षेप, सुगंध, वासप्रक्षेपादि, यह सर्व अंगपूजा की गिनती में है । महाभाष्य में भी कहा है
हवण विलेवण आहरण वत्थ फल गंध धूव पुप्फेहिं । कीरड़ जिणंगपूया तत्थ विही एम नायो ।
वत्थेण वंधिऊणं नासं अहवा जहा समाहीए । वज्जेयवं तु तथा देहंमित्र कंडुअणमाई ||
अन्यत्रापि --
कायकंडणं वज्जे, तहा खेलविर्गिचणं । थुथुतमणणं चेव, पूअंतो जगबंधुणो ॥
देव पूजन के अवसर में मुख्यवृत्ति से तो मौन ही करना चाहिये । जेकर न कर सके तो भी पापहेतु वचन तो सर्वथा ही त्यागे । नैधिकी करने में गृहादि-व्यापार का निषेध होने से पाप की संज्ञा भी वर्जे । मूलविंग की विस्तार सहित पूजा करे । पीछे अनुक्रम से अन्य सर्व बिंबों की पूजा करे ।