________________
नवम परिच्छेद
१९७
४. जिनेश्वर की मूर्ति जब दीखे तब अंजलि बांध के मस्तक पर चढा के ' नमो जिणाणं ' ऐसा कहे । ५. मन एकाग्र करे । इस रीति से पांच अभिगम सम्भाल के नैषेधिकीपूर्वक प्रवेश करे ।
जेकर राजा जिनमंदिर में प्रवेश करे, तब तत्काल राजचिन्हों को दूर करे । १. तलवार, २. छत्र, ३. सवारी, ४. मुकुट, ५. चामर, ये पांचों चिन्ह राजा के हैं, इनको त्यागे । अग्रद्वार में प्रवेश करते हुए घर के व्यापार का निषेध करने के वास्ते तीन नैषेधिकी करे, परन्तु तीनों निस्सही की एक नैपेधिकी गिनती में करनी, क्योंकि एक ही घर व्यापार का निषेध किया है। तब पीछे मूल बिंव को नमस्कार करके सर्व कृत्य, कल्याणवाञ्छक पुरुष ने दक्षिण के पासे करना । इस वास्ते मूलविंव को दक्षिण के पासे करता हुआ ज्ञान, दर्शन अरु चारित्र, इन तीनों के आराधनार्थ तीन प्रदक्षिणा देवे । प्रदक्षिणा देता हुआ समवसरणस्थ चार रूप संयुक्त जिनेश्वरदेव को ध्यावे । गंभारे में पृष्ठ, वाम, और दहिने पासे जो विंव होवें, तिन को वन्दे । इसी वास्ते सर्व मन्दिर में चारों तर्फ समवसरण के आकार में तीन तर्फ तीन विंव स्थापे जाते हैं। ऐसे करने से जो अरिहंत के पीछे वसने में दोष था, सो दूर हो गया, पीठ किसी पासे भी न रही । तिस पीछे चैत्यप्रमार्जनादि जो आगे लिखेंगे, सो करे । पीछे सर्व प्रकार की पूजा सामग्री के