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नवम परिच्छेद तथा मले स्थान से ज्ञातगुण मनुष्य के पासों पवित्र
भाजन में आच्छादित करके रस्ते में लाने की पूजासामग्री विधिसंयुक्त पानी अरु फूल, पूजा के वास्ते
मंगावने चाहिये । अरु फूलादि लानेवाले को अच्छी तरें मोल देकर प्रसन्न करना चाहिये। इस प्रकार मुखकोश वांध के पवित्र स्थानादि में, जिस में कोई जीव पड़ा न होवे, ऐसा गोधा हुवा केसर कर्पूरादिक से मिश्न चन्दन को युक्ति से घिसे । शोधा हुआ सुन्दर धूप, प्रदीप, अखण्ड चावलादि, छूत रहित, प्रशंसा करने योग्य, ऐसा नैवेद्य फलादि सामग्री मेल के, इस प्रकार द्रव्य से शुचि कर के अरु भाव से शुचि तो राग, द्वेष, कपाय, ईर्ष्या रहित, तथा इस लोक परलोक के सुखों की इच्छा रहित हो कर अरु कुतूहल, चपलता आदि का त्याग करके एकाग्रचित्तारूप भाव शुद्धि करे । कहा भी है
मनोवाकायवस्रोर्वीपूजोपकरणस्थिते । शुद्धिः समविधा कार्या, श्रीअर्हत्पूजनक्षणे ।। ऐसे द्रव्य भाव करके शुद्ध हो कर जिनघर-देहरे में
दक्षिण तर्फ से पुरुष, अरु वाम दिशा से जिनमन्दिर प्रवेश स्त्री, यत्न पूर्वक प्रवेश करे। प्रवेश के अवसर और पूजाविधि में दक्षिण पग पहिले घरे । पीछे सुगंध--
वाले मीठे सरस द्रव्यों करके पराङ्मुख