________________
जैनतत्त्वादर्श आच्छादित जल में, शैवल करके आच्छादित जल में स्नान न करे, तथा शीतल जल से स्नान करके उष्ण भोजन न खाना चाहिये। अरु उष्ण जल से स्नान करके शीतल भोजन न खाना चाहिये । तैलमर्दन सदा ही करना चाहिये । तथा स्नान करे पीछे जिस की कांति फीकी दीसे, तथा जिस के दांत परस्पर घिसे, अरु शरीर से मृतक जैसी गन्ध आवे, तिस का मरण तीन दिन के अन्दर होगा। तथा स्नान करे पीछे जिसके हृदय में, तथा दोनों पगों में तत्काल पानी शोष जावे, तो छ दिनों के बीच में उसका मरण जानना । मैथुन का सेवन तथा वमन, इन दोनों में कछुक देर पीछे स्नान करे। तथा मृतक की चिता के धूम लगने से क्षौरकर्म में मस्तक मुण्डवा करके छाने हुये शुद्ध जल से स्नान करे । तथा तेलमर्दन करी स्नान करे, पीछे उज्ज्वल वस्त्र,
आमरण पहिरना । पीछे प्रयाण करने के दिन में, संग्राम में बाते हुए, विधामंत्र साधते, रात को, सांझ को, पर्व दिन में, नवमे दिन में स्नान न करे, मस्तक मुण्डन भी न करावे । तथा पक्ष में एक वार दाढी मस्तक के केश तथा नख दूर करावे । परन्तु अपने दांतों करी तथा अपने हाथ करके नख न कतरे। स्नान करने से शरीर पवित्र चैतन्य सुखकर होने से भाव शुद्धि का हेतु हो जाता है। उक्तं च द्वितीये अष्टकप्रकरणे