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________________ नवमं परिच्छेद १८९ दीखे, सिर नहीं दीखे, तो पांच दिन के अन्दर उसका मरना जानना । अरु जिस ने उपवास पौरुष्यादिक प्रत्याख्यान करा होवे, वो दांत धोये बिना भी शुद्ध है, क्योंकि तप का बड़ा फल है । लौकिक शास्त्रों में भी उपवासादि करे, तो दातन बिना ही देवपूजा करते हैं । इस वास्ते लौकिक शास्त्रों में भी उपवासादि में दातन करने का निषेध है । यदुक्तं विष्णुभक्तिचंद्रोदयमंथे प्रतिपद्दर्शपष्ठी, मध्याह्ने नवमीतिथौ । संक्रांतिदिवसे प्राप्ते, न कुर्यादंतधावनम् ॥ १ ॥ उपवासे तथा श्राद्धे, न कुर्यात् दंतधावनम् । दंतानां काष्ठसंयोगो, हंति सप्त कुलानि वै ॥ २ ॥ तथा जब स्नान करे, तब उत्तिग, पनक, कुंथु आदि नीवों से रहित भूमि में करे। सो भूमि ऊंची, नीची. पोली न होवे । प्रथम तो उष्ण प्राशुक जल से स्नान करे; जेकर उष्ण जल न मिले, तब वस्त्र से छान करके प्रमाण संयुक्त शीतल जल से स्नान करे । तथा व्यवहार शास्त्र में ऐसा लिखा है कि, नग्न हो कर तथा रोगी तथा परदेश से आया हुआ, भोजन करे, पीछे आभूषण पहिर के, किसी को विदा करके पीछे आ करके, मंगल कार्य करके स्नान न करे । तथा अनजाने पानी में, दुष्प्रवेश जल में, मैले जल में, वृक्षों करके स्नानविधि
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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