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जैनतत्त्वादर्श जाने हुए वृक्ष की झोनल करे। तथ दांतों तवन निको हड़ करने के वास्ते तर्जनी अंगुली ते
दांजे की बीड क्ति । जो दांतों की नैल पड़े उसके जर लिगेर देवे । तया दतन नी जैसी करे ! जो द्वारन सी हो, बीच में गांठ न होवे, कूर्च अच्छा होते. आगे से पचली होवे. चेंटी अंगुली सनान मोटी होवे, सुनूनि ची उसन्न हुई हो. ऐसी दातन कनिष्ठा, अनानिका के लेकर करे । पहिले दाहिनी दाद घिसे, फिर वानी हिसे : उन्ोगवंत स्वत्य दांत अरु मंड के नांस को पीज न दे। उत्तर नया पूर्व सन्मुल हो करके निश्चलासन, नौन युक्त हो कर बन करे। दुर्गव. पोली, सूखी. उट्टी, तारी वन्तु से दां- सोन विते, त्या व्यतिरात, रविवार, संक्रांति के दिन, महम लोन. नग्नी, भष्टनी. पड़वा. चौदस, पूर्णनाती. स्नाइस, इन दिनों में दातन न करे। जेजर दातन न निले, तब जुत्तशुद्धि के वास्ते वासं कुरले करे। अरु जिला उल्लेखन तो सबा करे। दातन की फांक से जिहा क नल हलने हवे सर्व उतार के शुचित्त्थान ने दातन धो करके अपने नुख के तानने गरे । त्या सांसी, श्वास, तर, मार्ग, शोक, मावाला, सुख पके वाला, नत्तक, नेत्र, हृदय, कान, इनके रोगवाल दातन न करे।
नस्तक के केशों को सदा तनारे, जिससे कि जून पड़े। जेकर तिलक करके जारीला देखे, उस ने नुल नहीं