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का है, परन्तु रोम करने से भंग नहीं
नवम परिच्छेद
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आहार का नहीं है । इस वास्ते लेपादि
तथा निम्नलिखित इतनी वस्तु किसी आहार में भी नहीं हैं- पंचांग नींव, गोमूत्र, गिलोय, कडु, चिरायता, अतिविष, कुडे की छाल, चीड, चंदन, राख, हरिद्रा, रोहणी, ऊपलोट, वच, त्रिफला, ववूल की छिलक, घमासा, नाहि, असगंध, रंगणी, एलुवा, गुगल, हरडां, दाल, कर्पास की जड़, वेरी, कन्धेरी, करीर, इनकी जड़, पुंआड, वोढथोहर, आछी, मंजीठ, वोड, बीजकाष्ठ, कुआर, चित्रक, कुंदरु प्रमुख जो वस्तु खाने में अनिष्ट लगे, वो सर्व अनाहार है । यह अनाहार वस्तु रोगादि कष्ट में चौविहार प्रत्याख्यान में भी खा लेवे, तो भंग नहीं । इस तरह आहार के भेद जान के प्रत्याख्यान करे ।
पीछे मलोत्सर्ग, दंतधावन, जिह्वालेखन, कुरला करना, यह सर्व देश स्नान करके पवित्र होवे, यह मलोत्सर्गविवि कहना अनुवाद रूप है । क्योंकि यह पूर्वोक कर्म सवेरे उठ के प्रायः सर्व गृहस्थ करते हैं । इस में शास्त्रोपदेश की अपेक्षा नहीं, स्वतः ही सिद्ध है । परन्तु इनकी विधि शास्त्र कहता है । उसमें प्रथम मलोत्सर्ग की विधि यह है कि, मलोत्सर्ग मौनसे करना चाहिए, और निर्दूपण - योग्य स्थान में करे । यतः