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जैनतत्त्वादर्श है। अरु कल्प वृत्ति में इनको खादिम लिखा है। कोई एक अजवायन को भी खादिम कहते हैं। यह मतांतर है। यह सर्व स्वादिम नामक आहार है। तथा एलायची, कर्पूरादि वासित जल द्विविध आहार प्रत्याख्यान में पीना कल्पता है। तथा वेसण, सौंक, सोय, कोठवड़ी, आमलागांठ, अंच की गुठली, निंबू के पत्र प्रमुख खादिम होने से द्विविध आहार प्रत्याख्यान में नहीं कल्पते है। त्रिविध आहार प्रत्याख्यान में तो जल ही पीना कल्पता है । तिसमें भी फूंकारा हुआ पानी, साकर, कपूर, एलायची, कत्था, खदिर, चूर्णक, सेलक, पाड़लादि वासित जल, जेकर नितार अरु छान के लेवे तो कल्पे, अन्यथा नहीं।
तथा शास्त्रों में मधु, गुड़, साकर, खांड आदि भी स्वादिम कहे हैं । अरु द्राक्षा, शर्करादि, जल, तक्र-छाछादि को पानक कहा है। तो भी द्विविध आहार प्रत्याख्यान में नहीं कल्पते है । नागपुरीय गच्छ प्रत्याख्यानभाज्य में कहा है
दस्खा पाणाईयं, पाणं तह साइमं गुडाईयं । पढियं सुयंमि तहवि हु, तितो जणगंति नायरि।।
स्त्री के साथ भोग करने से चौविहार भंग नहीं होता है, परन्तु वालक तथा स्त्री के होठ मुल में लेकर चर्वण करे, तो भा होवे। अरु द्विविध आहार प्रत्याख्यान में यह भी करे तो भंग नहीं होता । प्रत्याख्यान जो है सो कवल आहार