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नवम परिच्छेद
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तथा रात्रि में चौविहार करे अरु दिन में एकासना करे, पीछे ग्रंथि सहित प्रत्याख्यान करे, तब तिसको प्रतिमास उनतीस उपवास का फल होता है। दो वार भोजन उक्त रीति से करे, तो अठावीस उपवास का फल होता है । क्योंकि दो घड़ी का काल भोजन करते लगता है, शेष काल तप में व्यतीत हुआ । यह कथन पद्मचरित्र में है । प्रत्याख्यान उपयोगपूर्वक पूरा हो जावे तब पारे ।
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चार प्रकार के आहार का विभाग ऐसे है। एक तो अन्न, पक्कान्न, मण्डक, सत्तू आदि जो क्षुधा दूर करने को समर्थ होवे, सो प्रथम अशन नामक आहार है । दूसरा छाछ का पानी, तथा उष्ण जलादि, यह सर्व पानक नामक आहार है । तीसरा फल, फूल, इक्षुरस पहुंक, सूखडी आदिक, यह सर्व खादिम नामक आहार है । चौथा सूंठ, हरडे, पिप्पली, काली मिरच, जीरा, अजमक, जायफल, जावत्री, असेलक, कत्था, खैरवड़ी, मधुयष्टि-मुलठी, तज, तमालपत्र, एलायची, कुठ, विडंग, बिडलवण, अजमोद, कुलंजण, पिप्पलामूल, कबाबचीनी, कचूर, मुस्ता, कर्पूर, सौंचल, हरड़, बहेड़ा, बंबूल, धव, खदिर, खेज की छाल, पान, सौपारी, हिंगुलाटक, हिंगु, त्रैवीसओ पंचल, पुष्करमूल, जवासामूल, बाबची, तुलसी, कपूरिकंदादिक जीरा; यह सर्व भाष्य अरु प्रवचनसारोद्धारादिक ग्रंथो के लेख से स्वादिम नामक आहार
चार प्रकार
का आहार