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जैनतत्वादर्श तो भी योनि रखने के वास्ते तथा निःशूकतादि के परिहार के वास्ते दांतों से तोड़ना-मांगना न चाहिये । इत्यादि सचित्त वस्तु का स्वरूप जान कर सातमा व्रत अंगीकार करना चाहिये। श्रावक को प्रथम तो निरवद्य-दूषण रहित आहार खाना
___चाहिये। ऐसे न कर सके तो सर्व सचित्त प्रत्याख्यान खाने का त्याग करे । ऐसे भी न कर सके तो विधि बावीस अभक्ष्य अरु बत्तीस अनंतकाय तो
अवश्यमेव त्यागने चाहिये, तथा चौदह नियम धारने चाहिये। ऐसे सोता उठ कर यथाशक्ति नियम ग्रहण करे। पीछे यथाशक्ति प्रत्याख्यान करे । नमस्कार सहित पौरुष्यादि प्रत्याख्यान काल जो है, सो जेकर सूर्य उगने से पहिले उच्चारण करिये, तब तो शुद्ध है, अन्यथा शुद्ध नहीं । अरु शेष प्रत्याख्यान सूर्योदय से पीछे भी हो सकते हैं। तथा यह नमस्कार सहित प्रत्याख्यान जेकर सूर्योदय से पहिले उच्चारण करा हुआ होवे, तब तिसको पूर्व होने से तिसके बीच ही पौरुषी साढ़पौरुण्यादि काल प्रत्याख्यान हो सकता है। जेकर नमस्कार सहित सूर्योदय से पहिले उच्चारण न करिये, तब तो कोई भी काल प्रत्याख्यान करना शुद्ध नहीं। अरु जेकर प्रथम नमस्कारादि प्रत्याख्यान मुष्टिसहितादि करे, तब सर्व काल प्रत्याख्यान करे, तो शुद्ध है।