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जैनतत्त्वादर्श हो जाता है। जेकर तत्काल छान लेवे, तब अन्तर्मुहर्त लग मिश्र रहे, पीछे अचित्त होवे ।
शिष्य प्रश्न करता है कि, पीसा हुआ आटा कितने दिन का अचित्तभोजी श्रावक को खाना चाहिये ?
उत्तर-सिद्धांत में हम ने आटे की मर्यादा का नियम नहीं देखा है, परन्तु बुद्धिमान् नवा, जीर्ण अन्न, तथा सरस नीरस क्षेत्र, तथा वर्षा, शीत, उष्णादि ऋतु, तिन में तिस आटे का पन्दरा दिन मासादि काल में वर्ण, गन्ध, रस, स्पहदि बिगड़ा देखे, तथा सुरसली प्रमुख जीव पड़ा देखे, तब न खावे, जेकर खावे, तो जीवहिंसा अरु रोगोत्पत्ति का कारण है।
तथा मिठाई की मर्यादा, अरु विदल का निषेध, ऊपर सातमे व्रत में लिख आये हैं, वहां से जान लेना। तथा दही में सोलां पहर उपरांत जीव उत्पन्न होते हैं। तथा विवेकी जीव को बैगन, टीबरु, जामन, बिल्ब, पीलं, पक्क करमद, पका गूंदा, लसूड़ा, पेंचु, मधुक-महुवा, मोर, वालोल, बडे बोर, झाड़ी के बोर, कच्चा कौठफल, खसखस, तिल, इत्यादि न खाने चाहिये। इनमें त्रस जीव होते हैं। तथा जो फल रक्त-लालरंग देखने में बुरा लगे, पक, गोल, ककोड़ा, फणस, कटेल प्रमुख भी बुरी भावना के हेतु होने से न खाने चाहिये। तथा जो फल जिस देश में खाना विरुद्ध होवे, जैसे कड़वा तूंबा, कूष्मांड अर्थात् कोहडा-हलवा कदु, सो भी न खाना