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________________ नवम परिच्छेद १७९ मुख ढांक के रक्खे, लीपा होवे, तथा चारों तर्फ से लीपा होवे, ऊपर कोई और ढकना दिया होवे, मुद्रित, लांछित करके रक्खे, तो कितने काल ताई जीवयोनि रहे! ऐसा प्रश्न पूछने से भगवान् कहते हैं कि, हे गौतम ! जघन्य तो अन्तर्मुहूर्ण रहे, अरु उत्कृष्ट तो तीन वर्ष रहे, फिर अचित्त हो जावे। तथा मटर, मसूर, तिल, मूंग, उड़द, वाल, कुलथी, चवला, तुअर, गोल चणे, इत्यादि धान्य सर्व ऊपरवत् जानना । अनवरं उत्कृष्ट से पांच वर्ष उपरांत अचित्त होते हैं। तथा अलसी, कुसुमे की करड, कोदु, कंगुनी, चटरी, राल, कोरड्सक, सण, सरसों, मूली के वीज, इत्यादि धान्य भी ऊपरवत् , नवरं उत्कृष्ट से सात वर्ष उपरांत अचित्त हो जाते हैं। तथा कर्पास के विनौले, उत्कृष्ट तीन वर्ष से उपरांत अचित्त-जीव रहित हो जाते हैं। यह कथन भी कल्पमाण्यवृत्ति में है। तथा बिना छना आटा श्रावण भादों के महीने में पांच दिन तक मिश्र रहता है, पीछे अचित्त होता है। आसोज, कार्तिक मास में चार दिन तक मिश्र रहता है, पीछे अचित्त हो जाता है। मगसिर, पौष मास में तीन दिन मिश्र रहता है, पीछे अचित्त होता है। माघ, फाल्गुन मास में पांच पहर मित्र रहता है । चैत्र, वैशाख मास में चार पहर मिश्र रहता है। तथा ज्येष्ठ आषाढ़ में तीन पहर मिश्र रहता है, उपरांत अचित्त * विशेष-अर्थात् प्रथम से इस में इतना विशेष है ।
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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