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जैनतस्वादर्श
जोयणसयं तु गंतुं, अणहारेण तु मंडसंकंती | वायागणिधूमेण य, विद्वत्थं होइ लोणाई ||
इनमें से हरड, पीपल प्रमुख तो आचीर्ण हैं, इस वास्ते लेते हैं, अरु खर्जूर, द्राक्ष प्रमुख अनाचीर्ण हैं । तथा उत्पलकमल, पद्मकमल, धूप में रक्खे हुए एक पहर के अभ्यंतर ही अचित हो जाते हैं । तथा मोगरे के फूल, जुहि के फूल, यह धूप में बहुत चिर भी पड़े रहें, तो भी अचित्त नहीं होते हैं । तथा मगदंति का पुष्प अर्थात् मोगरे के फूल पानी में गेरे रहें, तो एक पहर के अन्दर ही अचित्त हो जाते हैं । तथा उत्पल - नीलकमल अरु पद्मकमल, ये दोनों गेरे रखने से बहुत काल में अचित नहीं होते हैं योनिकत्वात् " । तथा पत्रों फूलों का, जिन अमी तक गुठली बनी नहीं है, हरित वनस्पति का, इन सब का जावे, तब ये जीव रहित हुए जानने । यह कथन श्रीकल्पभाष्यवृत्ति में है
पानी में
।
" शीत
का,
फलों में
तिन का तथा बथुआ प्रमुख
वृन्त - डण्डी ही कुमलाय
।
तथा श्रीपञ्चमांग के छुट्टे शतक के पांचमे उद्देश में सचिवाचित वस्तु का स्वरूप ऐसा लिखा सचित्ताचित्त की है - शालि, त्रीहि, गेहूं, जव, जवजव; ये कालमर्यादा पांच धान्य की जाति कोठार में, तथा ठेके पाले में तथा मंचा, माला, कोठार विशेषों में
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