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________________ १७२ जैनतत्त्वादर्श तप करते हैं, निरन्तर धर्म के रागी हैं, तिनों को खोटा स्वप्न भी अच्छा फल देता है । तथा जो पुरुष, देवगुरु का स्मरण करके अरु शत्रुजय, समेतशिखर प्रमुख शुभ तीर्थों का नाम, तथा गौतमस्वामी, सुधर्मस्वामी प्रमुख आचार्यों का नाम स्मरण करके सोवे, उसको कदापि खोटा स्वप्न नहीं होता है। थूकना होवे, तो राख में थूकना चाहिये, शरीर को दृढ कर के वास्ते हाथों करके वज्रीकरण करे, अग्नितत्त्व, अरु पवनतत्व, जब वहता होवे, तब घाप करके आकंठ-कंठ ताई दूध पीवे। कईएक आचार्य कहते हैं कि आठ पसली पानी की पीवे, इस का नाम वज्रीकरण है । तथा सवेरे उठ कर माता, पिता, पितामह, बड़ा भाई प्रमुख को नमस्कार करे, तो तीर्थयात्रा के समान फल होता है। इस वास्ते यह प्रतिदिन करनी चाहिये । तथा जिसने वृद्धों की सेवा नहीं करी है, उसको धर्म की प्राप्ति नहीं होती है। वृद्ध उसको कहते हैं कि जो शील में, सन्तोष में, तथा ज्ञान, ध्यानादिक में बड़े होवें । तिनकी सेवा अवश्य करनी चाहिये । तथा जिसने राजा की सेवा नहीं करी है, अरु जिसने उत्पन्न होते हुए अपने शत्रु को बन्द नहीं करा, तिस पुरुष से धर्म अर्थ अरु सुख दूर है।
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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