________________
जैनतत्वादर्श के वास्ते, तथा स्वप्न में स्त्री से प्रसंगादि करने के खोटे स्वप्न का उपलंभ हुमा होवे, तब एक सौ आठ उच्यास प्रमाण कायोत्सर्ग करे, अन्यथा सौ उच्छास प्रमाण कायोत्सर्ग करे । चार लोगस्स का काउस्सग्ग करे । यह कथन व्यवहार भाष्य में है । तथा *विवेकविलासादि ग्रन्थों में तो ऐसे लिखा है कि, स्वप्न देखने के पीछे फिर नहीं सोना, अरु स्वप्न को दिन में सद्गुरु के आगे कहना, जेकर खोटा स्वम आवे तो फिर सोना ठीक है, किसी के आगे कहना न चाहिये। तथा समधातुवाला, प्रशांतचित्तवाला, धर्मी और नीरोगी, जितेंद्रिय, इन को जो शुभाशुभ स्वम आवे, सो सत्य ही होता है । स्वम जो आता है, सो नव कारणों से आता है। सो नव कारण कहते हैं।
१. अनुभव करी हुई वस्तु का स्वप्न आता है, २. सुनी हुई बात का, ३. देखा हुआ, ४, प्रकृति-बात, पित्त अरु कफ के विकार से, ५. चिंतित वस्तु का, ६. सहज स्वभाव से, ७. देवता के उपदेश से, ८. पुण्य के प्रभाव से, ९. पाप
* सुस्वप्न प्रेक्ष्य न स्वप्यं, कथ्यमहि च सद्गुरो ।
दुःस्वनं पुनरालोक्य, कार्यः प्रोकविपर्ययः ॥' समधातोः प्रशान्तस्य, धार्मिकस्यापि नीरुजः । स्यातां पुंसो मिताक्षस्य, स्वप्नी सत्यौ शुभाशुभौ ।
[१ उल्लास ली. १४, १५]