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जैन तत्त्वादर्श
पूजाकोटिसमं स्तोत्रं, स्तोत्रकोटिसमो जपः । जपकोटिसमं ध्यानं, ध्यानकोटिसमो लयः ॥ [ उप० त०, त० ३, श्लो० १६ ] ध्यान की सिद्धि के वास्ते श्रीजिन- जन्म - दीक्षादि कल्याणक भूमिरूप तीर्थ में जावे, अथवा और कोई विविक्त स्थान होवे, तहां ध्यान करे । ध्यान का स्वरूप देखना होवे, तो आवश्यक सूत्रांतर्गत ध्यानशतक में देख लेना । नमस्कार मन्त्र का जो जाप है, सो इस लोक तथा परलोक में बहुत गुणकारी है । महानिशीथ में कहा है: -
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नासेइ चोर सावय विसहर जल जलण बंधण भयाई । चिंतितो रक्खस रण राय भयाई भावेण ||
अर्थ: - चोर, सिंह, सर्प, पानी, अग्नि, बंधन, संग्राम, राजभय, इतने भय पञ्चपरमेष्ठी मन्त्र के स्मरण से नष्ट हो जाते हैं । परन्तु एकाग्रता भाव से जपे, तो यह फल होता है । पञ्चपरमेष्ठी मन्त्र सर्व जगे पढ़ना चाहिये, नमस्कार मन्त्र का एक अक्षर जपे, तो सात सागरोपम का करा हुआ पाप नष्ट होता है । जेकर संपूर्ण पञ्चपरमेष्ठी मन्त्र को जपे, तो पांच सौ सागर का करा हुआ पाप नष्ट हो जाता है । तथा जो पुरुष एक लक्ष वार पञ्चपरमेष्ठी मन्त्र का जाप करे अरु तिस की विधि से पूजा करे, तो तीर्थंकरनामकर्म गोत्र का