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नवम परिच्छेद
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नवकार मन्त्र का एक अक्षर अथवा एक पद भी जपे, तो भी जाप हो सकता है योगशास्त्र के अष्टमप्रकाश में कहा है कि, पञ्चपरमेष्ठी मंत्र के " अरिहंत सिद्ध आयरिय उवज्झाय साहु " इन सोलां अक्षर का जाप करे, तथा " अरिहंत सिद्ध " इन षड् वर्ण का जाप करे, तथा " अरिहंत " इन चार अक्षर का जाप करे, तथा आकार जो वर्ण है, सो भी मन्त्र है; इस के जाप से स्वर्ग मोक्ष का फल होता है । व्यवहार फल ऐसे जानना कि, षड् वर्ण का जाप तीन सौ वार करे, तथा चार वर्ण का जाप चार सौ बार करे, अरु सोलां दो सौ वार करे; तो एक उपवास का फल अकार को ध्यावे,
अक्षर का जाप
होता है ।
तथा
वर्ण को
मुख - कमल में
नाभि कमल में स्थिर मस्तक - कमल में ध्यावे, तथा आकार को घ्यावे । हृदय - कमल में स्थित उकार को ध्यावे, तथा साकार को कण्ठ- पिंजर में ध्यावे । यह सर्व कल्याणकारी जाप है । " यह पांच वीज हैं । इन पांचों वीजों का
“ असि आउ सा ओंकार बनता है ।
अरु सि
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तब तो
तथा और वीज मन्त्रों का भी जाप करे, जैसे नमः सिद्धेभ्यः " जेकर इस लोक के फल की ओंकार पूर्वक पढ़ना चाहिये, अरु मोक्ष रहित पढना चाहिये। इस जापादि के होता है । यतः
इच्छा होवे, वास्ते जपे, तो ओंकार करने से बहुत फल
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