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जैन तत्वादर्श
शरीर के वस्त्रों से तथा भूमिका से माला न लगने देनी । अंगूठे के ऊपर माला रख करके तर्जनी अंगुली से नख बिना लगाये मनका फेरे और मेरु उल्लंघन न करे । शास्त्रकार लिखते हैं कि, जो अंगुली के अग्र से जाप करे, अरु जो मेरु उल्लंघ के जाप करे, तथा जो बिखरे हुए चित से जाप करे, यह तीनों जाप थोड़ा फल देते हैं । जाप करने - वाला बहुतों से एकला अच्छा, शब्द करके जाप करने से मौन करके करे, सो अच्छा है । जेकर जप करते थक जावे, तो ध्यान करे, ध्यान करने से थक जाये, तो जप करे; दोनों से थक जावे, तो स्तोत्र पढ़े ।
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श्रीपादलिप्त आचार्यकृत प्रतिष्ठाकल्पपद्धति में लिखा है कि, जाप तीन तरे का है— एक मानस, दूसरा उपांशु, तीसरा भाष्य । इन तीन में मानस उसको कहते हैं कि जो मन की विचारणा से होवे, स्वसंवेद्य होवे । अरु उपांशु उसको कहते हैं कि जो दूसरा तो न सुने, परन्तु अन्तर्जल्प रूप होवे । तथा जो दूसरों को सुनाई देवे, सो भाष्य । यह तीनों क्रम करके उत्तम, मध्यम, अरु अधम जान लेने | उसमें मानस से शांति होती है, एतावता शांति के वास्ते मानस जाप करना अरु, पुष्टि के वास्ते उपांशु जाप करना, तथा आकर्षणादिक में भाष्य जाप करना ।
नमस्कार मन्त्र के पांच पद, नवपद, अथवा अनानुपूर्वी को चित्त की एकाग्रता के वास्ते गुणे । तथा इस