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नवम परिच्छेद की कर्णिका में अरिहंत पद को स्थापन करे, पूर्व पांखडी में सिद्ध, दक्षिण पांखडी में आचार्य, पश्चिम पांखडी में उपाध्याय, उत्तर पांखडी में साधु पद को स्थापन करे । अरु बाकी चूलिका के जो चार पद हैं, सो अनुक्रम से अग्न्यादि चारों कोनों में स्थापन करे । उक्तं चाष्टमप्रकाशे योगशास्त्रे श्रीहेमचन्द्रसूरिभिः
अष्टपत्रे सितांमोजे, कणिकायां कृतस्थितिम् । आय सप्ताक्षरं मंत्रं, पवित्रं चिंतयेत्ततः ॥१॥ सिद्धादिकचतुष्कं च, दिपत्रेषु यथाक्रमम् । चुलापादचतुष्कं च, विदिक्पत्रेषु चिंतयेत् ॥ २ ॥ त्रिशुद्ध्या चिंतयंस्तस्य, शतमष्टोत्तरं मुनिः ।। भुञ्जानोऽपि लभेतैव, चतुर्थतपसः फलम् ।। ३ ।।
[लो० ३४, ३५, ३६] हाथ के आवर्त से पञ्च मङ्गल मन्त्र का जो नित्य स्मरण करे, उसको पिशाचादिक नहीं छलते हैं। बन्धनादि कष्ट में विपरीत शङ्खावर्चकादि से अक्षरों करके अथवा विपरीत पदों करके जो पञ्चमङ्गल मंत्र का लक्षादि जाप करे, तो शीघ्र क्लेशादिकों का नाश होवे । जेकर हाथ पर जाप न कर सके तो सूत की, रन की, रुद्राक्षादि की माला पर जाप करे । मालावाला हाथ, हृदय के सामने रक्खे, शरीर से तथा
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