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जैनतत्त्वादर्श कोई एक आचार्य ऐसे भी कहते हैं कि, विद्यारम्भ में, दीक्षा में, शास्त्राभ्यास में, विवाद में, राजा के देखने में, मन्त्र यन्त्र के साधने में सूर्यनाड़ी शुम है। अथवा जो चंद्रादि स्वर निरन्तर चलता होवे, तो तिस पासे का पग उठा के प्रथम चले तो कार्यसिद्धि होवे । ____ पापी जीवों के शत्रुओं के चोर प्रमुख जो क्लेश के करनेवाले हैं, तिन के सन्मुख जो नासिका बन्द होवे, सो पासा इन के सामने करे। जो सुख लाम जयार्थी है, उस में प्रवेश करता हुआ पूरा स्वर, वामा पग शुक्ल पक्ष में, अरु, जमणा पग कृष्ण पक्ष में शय्या से उठते हुए धरती पर रक्खे । इस विधि से श्रावक नींद त्यागे। अरु श्रावक अत्यन्त बहुमानपूर्वक मंगल के वास्ते पंच
परमेष्ठी नमस्कार मन्त्र का स्मरण करे, नमस्कार मन्त्र शय्या में बैठा हुआ तो मन में पंचपरमेष्ठी और जपविधि नमस्कारमन्त्र का स्मरण करे, वचन से उच्चा
रण न करे। जेकर मुख से उच्चारण करे, तो .शय्या. छोड़ कर धरती पर बैठ कर नमस्कारमन्त्र को पढ़े। ऐसे नमस्कार मन्त्र का हृदय में स्मरण करता हुआ शय्या से. उठे, पवित्र भूमि के ऊपर बैठे, तथा पूर्व अथवा उत्तर दिशा की ओर मुख करके खड़ा रह कर चित्त की एकाग्रता के वास्ते कमलबंध कर जपादि से नमस्कार मन्त्र पढ़े। तहां आठ पांखड़ी के कमल की कल्पना करके उस