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जैनतवादर्श अरु मुख का उच्छवास रोके, उससे निद्रा तत्काल दूर हो जाती है। पीछे दरवाजा अच्छी तरे से देख के लघुशंकादि करे। तथा रात्रि में किसी को कुछ कहना पड़े, तब मन्द स्वर से कहे, ऊंचे स्वर से न कहे। क्योंकि रात्रि में ऊंचा शब्द करने से छपकली प्रमुख हिंसक जीव जाग जाते हैं, फिर वो मक्खी आदिक जीवों की हिंसा करते हैं। तथा कसाई जाग जावे तो गौ, बकरी, भेड़ प्रमुख को मारने के वास्ते चला जावे । तथा माछी जाल ले कर मछली मारने को चला जावे। तथा बावरी, अहेडी, खून करनेवाला, मदिरा बनानेवाला, परस्त्रीगमन करनेवाला, तस्कर, लुटेरा, धोबी, घाडी, कुम्भार अरु जुआरी प्रमुख अनेक हिंसक जीव जाग कर अनेक तरें के पाप करने में प्रवृत्त हो जाते हैं। रात्रि में ऊंचे शब्द से बोलनेवालों को यह सर्व पाप लगे, इस वास्ते रात्रि में ऊंचे शब्द से न बोलना चाहिये। जब सबेर के वक्त निद्रा भंग होवे, तब तत्वों के जानने
वाले श्रावक को तत्त्वों का विचार करना शुभाशुभ तत्त्व चाहिये । सो तत्व पांच हैं, तिस का नाम और स्वर कहते है-१. पृथ्वी, २. जल, ३. अग्नि, ४.
वायु, ५, आकाश । निद्रा-छेद के समय में जेकर पृथ्वी, तत्व अरु जल तत्व वहे, तब तो शुभ है, अरु जेकर अग्नि, वायु तथा आकाश तत्व वहे, तो दुःखदायक है। शुक्ल पक्ष की पडवा के दिन जेकर वामी नासिका का स्वर