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जैनतत्त्वादर्श ___यह सम्यक्त्र पूर्वक बारह व्रतरूप गृहस्थधर्म का स्वरूप धर्मरत्न प्रकरण तथा योगशास्त्रादि ग्रन्थों से संक्षेप में लिखा है। जेकर विशेष देखना होवे, तो धर्मरलशास्त्रवृत्ति तथा योगशास्त्र देख लेना।
इति श्री तपागच्छीय मुनि श्रीवुद्धिविजय शिप्य मुनि मानंदविजय-आत्मारामविरचिते जैनतत्वादर्श
अष्टमः परिच्छेदः संपूर्णः ॥
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