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जैनतस्वादर्श
के वास्ते सरस आहार करे। ३. पौषध के पौषध के दोष अगले दिन विविध प्रकार का संयोग मिलाय
के आहार करे । ४. पौषध के निमित्त अथवा पौषध के अगले दिन में विभूषा करे । ५. पौषध के वास्ते वस्त्र धोवावे । ६. पौषध के वास्ते आमरण घड़ा कर पहिरे । स्त्री भी नथ, कंकणादि सोहाग के चिह वर्ज के दूसरा नवा गहना घड़ा के पहिरे। ७. पौषध के वास्ते वस्त्र रंगा कर पहिरे । ८. पौषध में शरीर की मैल उतारे । ९. पौषध में विना काल निद्रा करे। १०. पौषध में स्त्रीकथा करे-स्त्री को भली बुरी कहे । ११. पौषध में आहारकथा करे-भोजन को अच्छा बुरा कहे। १२. पौषध में राजकथा करे-युद्ध की बात सुने, वा कहे । १३. पौषध में देशकथा करे-अच्छा बुरा देश कहे । १४. पौषधमें लघुशंका अरु बड़ीशंका भूमिका पूंजे विना करे । १५. पौषध में दूसरों की निंदा करे । १६. पौषध में स्त्री, पिता, माता, पुत्र, भाई प्रमुख से वार्तालाप करे । १७. पौषध में चोर की कथा करे । १८. पौषधमें स्त्री के अंगोपांग, स्तन, जघनादि को देखे, यह अठारह दूषण पौषध में वजें, तो शुद्ध पौषध जानना। अन्यथा पांचमा अतिचार लगे।
अथ बारहवां अतिथिसंविभागव्रत लिखते हैं। अतिथि