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अष्टम परिच्छेद
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तीसरा अप्पडिलेहिय दुप्पडिलेहिय उच्चारपासवण भूमि अतिचार - सो लघुशंका, बड़ीशंका, परिठवने की भूमि का नेत्रों से अवलोकन न करे, अरु अवलोकन करे, तो भी अलसुपलसु करके काम चलावे, जीवयत्ना बिना करे परिठवे तो तीसरा अतिचार लगे ।
दुप्पमज्जिय उच्चारपासवणभूमि
भूमिका को उच्चारपूंजे, तो भी यद्वा
अप्पमज्जिय
चौथा अतिचार - सो जहां मूत्र, विष्ठा करे, उस प्रस्रवण करने से पहिले पूंजे नहीं, जेकर तद्वा पूंजे, परन्तु यत्न से न पूंजे ।
पोसह विहिविवरीए
पांचमा
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अतिचार सो पौषध करे; जैसे कि प्रभात
में क्षुधा लगे, तब
पारणे की चिंता
अथवा
अमुक
वस्तु का आहार
करना है, तहां जाना पड़ेगा,
में अमुक रसोई करूंगा । तथा अमुक कार्य अमुक पर तगादा करूंगा । तथा प्रभात में पौषध पार के अच्छी तरें तेल मर्दन कराऊंगा, अच्छे गरम पानी से स्नान करूंगा, तथा अमुक पोशाक पहरूंगा, स्त्री के साथ भोग करूंगा, इत्यादि सावद्य चिंतना करे । तथा संध्या समय में पौषध के मंडल शोधन न करे, सर्व रात्रि सोता रहे, विकथा करे । पौषध के अठारह दूषण हैं, सो वजें नहीं । सो अठारह दूषण लिखते हैं:
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१. विना पोसे वाले का लाया हुआ जल पीवे । २. पौषध