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जैनतस्वादर्श
हार उपवास करके पौषध करे, अथवा आचाम्ल करके पौषध करे, अथवा तिविहार एकाशना करके पौषध करे, यह तीन प्रकार से देश पौषध होता है । विसकी विधि लिखते हैं:
पौषध करने से पहिले अपने घर में कह रक्खे कि, मैं आज पौषध करूंगा, इस वास्ते आचाम्ल अथवा एकाशना करा है। भोजन के अवसर में आहार करने को आऊंगा, अथवा तुम ने पौषधशाला में ले आना। पीछे से पौषध करने को जावे । तहां पौषध करके देववंदन करके, पीछे चरवला, मुखवस्त्रिका, पूंछणा, ये तीन उपकरण साथ ले करके चादर ओढ़ करके साधु की तरे उपयोग संयुक्त मार्ग में यत्न से चल कर भोजन के स्थान में जा करके, इरियावहिया पडिक्कमे – गमनागमन की आलोचना करे । पीछे पूंछणा के ऊपर बैठ के आहार करने का भाजन प्रतिलेख के, पीछे अपने लेने योग्य आहार लेवे । साधु की तरे रसगृद्धि से रहित आहार करे । मुख से आहार को अच्छा बुरा न कहे । आहार की जूठ गेरे नहीं, किन्तु आहार करे पीछे उष्ण जल से आहार का बरतन धो कर पी जावे । बरतन शुद्ध करके, सुखा करके उपयोग संयुक्त पौषधशाला में आवे । पूर्वस्थान में जा कर बैठे, परन्तु मार्ग में जाते आते किसी के साथ बात न करे । इस रीत से स्वस्थानक में आवे । इरियावही पडिक्कम के, चैत्यवंदन करके धर्मक्रिया में प्रवर्त्ते, तथा
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