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अष्टम परिच्छेद
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मंगवा लेवे, अरु मन में यह विचारे कि, मेरा व्रत भी भंग नही हुआ, अरु वस्तु भी आगई, यह प्रथम अतिचार है ।
दूसरा पेसवण प्रयोग अतिचार -- दूसरे आदमी के हाथ नियम से बाहिरली भूमिका में कोई वस्तु मेजे, सो दूसरा अतिचार है ।
तीसरा सद्दाणुवाय अतिचार - नियम की भूमिका से बाहिर, कोई आदमी जाता है, तिस से कोई काम है, तब तिस को खुंखारादि शब्द करके बोलावे, फिर कहे कि, अमुक वस्तु ले आना, तब तीसरा अतिचार लगे ।
चौथा रूपानुपाती अतिचार — कोई एक पुरुष उसके नियम की भूमिका से वाहिर जाता है । तिस के साथ कोई काम है, तत्र हाट हवेली पर चढ़ के उसको अपना रूप दिखावे। तब वो आदमी उसके पास आवे, पीछे अपने मतलब की बातें करे, तब चौथा अतिचार लगे ।
पांचमा पुद्गलाक्षेप अतिचार - नियम की भूमिका से बाहिर कोई पुरुष जाता है । तिसके साथ कोई काम हैं, तब तिसको कंकरा मारे । जब वो देखे, तब तिसके पास आवे, तब उसके साथ बातचीत करे। यह पांचमा अतिचार है । अथ ग्यारहवा पौषघोपवास नामा व्रत लिखते हैं । इस पौyear के चार भेद हैं, उसमें प्रथम आहार पौषध है, तिसके भी दो भेद हैं, एक देशतः दूसरा सर्वतः । तहां देश से तो तिवि
पौपघनत