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जैनतस्वादर्श
हुआ है, बड़ा पुरुष कहने में आता है, परन्तु धर्मकर्म का नाम भी नहीं जानता, धर्म तो दूर रहा, परन्तु हररोज़ सामायिक भी नहीं करता। ऐसी निंदा से डरता हुआ करे । ६. निदान दोष -- सामायिक करके निदान करे कि, इस सामायिक के फल से मुझे घन, स्त्री, पुत्र, राज्य, भोग, इन्द्र, चक्रवर्त्ती का पद मिले ।
७. संशय दोष — क्या जाने सामायिक का फल होवेगा कि नहीं होवेगा ! जिस को तत्त्व की प्रतीत न होवे, सो यह विकल्प करे ।
८. कषाय दोष - सामायिक में कषाय करे, अथवा क्रोध में तुरत सामायिक करके बैठ जाय । सामायिक में तो कषाय को त्यागना चाहिये ।
९. अविनय दोष - विनयहीन सामायिक करे ।
१०. अबहुमान दोष -- सामायिक बहुमान भक्तिभाव, उत्साहपूर्वक न करे ।
यह दश मन के दोष कहे, और पूर्वोक्त बारह काया के तथा दश वचन के मिला कर बत्तीस दूषण रहित सामायिक करे । इस सामायिक व्रत के पांच अतिचार टाले। सो अब पांच अतिचार कहते हैं ।
प्रथम कायदुष्प्रणिधान अतिचार - सो शरीर के अवयव हाथ, पग प्रमुख बिना पूंजे प्रमार्जे हिलावे, भींत से पीठ लगा कर बैठे !