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________________ अष्टम परिच्छेद करना चाहिये। ८. हास्य दोष-सामायिक में दूसरों की हंसी करे, मश्करी करे। ९. अशुद्ध पाठ दोष-सामायिक में सामायिक का सूत्रपाठ शुद्ध न उच्चारे, हीनाधिक उच्चारे, यद्वा तद्वा सूत्र पढ़े। १०. मुनमुन दोष-सामायिक में प्रगट स्पष्ट अक्षर न उच्चारे, दूसरों को तो जैसा मच्छर मिनमिनाट करता होवे, ऐसा पाठ मालूम पड़े, पद अरु गाथा का कुछ ठिकाना मालम न पड़े, गड़बड़ करके उतावल से पाठ पूरा करे। अब मन के दश दोष लिखते हैं: १. अविवेक दोष-सामायिक करके सर्व क्रिया करे, परन्तु मन में विवेक नहीं, निर्विवेकता से करे। मन में ऐसा विचारे कि सामायिक करने से कौन तरा है। इस में क्या फल है ! इत्यादि विकल्प करे। २. यशोवांछा दोष-सामायिक करके यशः कीर्ति की इच्छा करे। ३. धनवांछा दोष-सामायिक करने से मुझे धन मिलेगा। १. गर्वदोष-सामायिक करके मन में गर्व करे कि, मुझे लोग धर्मी कहेंगे। मैं कैसे सामायिक करता हूं, ये मूर्ख लोग क्या समझे ? . ५. भय दोष लोगों की निंदा से डरता हुआ सामायिक करे । क्योंकि लोग कहेंगे कि, देखो, श्रावक के कुल में उत्पन्न
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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