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जैनतत्त्वादर्श १०. विषमासन दोष-सामायिक में गले में हाथ देकर बैठे। ११. निद्रा दोष-सामायिक में नींद लेवे ।
१२. शीत प्रमुख की प्रबलता से अपने समस्त अङ्गोपांग को वस्त्र से बांके।
यह वारां दोष काया से उत्पन्न होते हैं, इन को सामायिक में वर्ने । अब वचन के जो दश दोष हैं, सो लिखते हैं
१. कुबोल दोष--सामायिक में कुवचन वोले।
२. सहसात्कार दोष-सामायिक ले करके बिना विचारे बोले।
३. असदारोपण दोष-सामायिक में दूमरों को खोटी मति दवे।
४. निरपेक्ष वाक्य दोष-सामायिक में शास्त्र की अपेक्षा विना बोले।
५. संक्षेप दोष-सामायिक में सूत्र, पाठ, संक्षेप करे, अक्षर पाठ ही न कहे, यथार्थ कहे नहीं ।
६. कलह दोष-सामायिक में साधर्मियों से क्लेश करे। सामायिक में तो कोई मिथ्यात्वी गालियां देवे, उपसर्ग करे, कुवचन बोले, तो भी तिस के साथ लडाई नहीं करनी चाहिये, तो फिर अपने साधर्मी के साथ तो विशेष करके लडाई करनी ही नहीं।
७. विकथा दोष-सामायिक में बैठ के देशकथादि चार चिकथा करे । सामायिक में तो स्वाध्याय अरु ध्यान ही