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________________ अष्टम परिच्छेद ४. सावधक्रियादोष-क्रिया तो करे, परन्तु तिस में कछुक सावध क्रिया करे, अथवा सावध क्रिया की संज्ञा करे, सो चौथा दोप। ५. आलंबन दोप--सामायिक में भीतादिक का आलंबन, अर्थात् पीठ लगा कर बैठे। क्योंकि विना पूंजी भींत में अनेक जीव बैठे हुए होते हैं, सो मर जाते हैं, तथा आलंबन से नींद भी आ जाती है। ६. आकुंचन प्रसारण दोष-सामायिक करके विना प्रयोजन हाथ, पग, संकोचे, लंबा करे। क्योंकि सामायिक में तो किसी मोटे कारण के बिना हिलना नहीं, जरूरी काम में चरवला से पूंजन प्रमार्जन करके हिलावे । ७. आलस दोप-सामायिक में आलस से अंग मोडे, अंगुलियों के कड़ाके काढ़े, कमर वांकी करे। ऐसी प्रमाद की बहुलता से व्रत में अनादर होता है, काया में अरति उत्पन्न हो जाती है । जब उठे, तब आलस मोड़ कर अति अशोभनिक रूप से उठे । यह सातमा आलस दोप है। ८. मोटन दोष-सामायिक में अंगुली प्रमुख टेढ़ी करी कढ़ाका काढे, ए पण प्रमाद की प्रबलता से होता है। ९. मल दोप-सामायिक ले करके खाज करे । मुख्यवृत्ति से तो सामायिक में खाज नहीं करनी, परन्तु जब लाचार होवे, तब चरवला प्रमुख से पूंजन प्रमार्जन करके हलवे हलवे खाज करे, यह शैली है।
SR No.010065
Book TitleJain Tattvadarsha Uttararddha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAtmaramji Maharaj
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1936
Total Pages384
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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