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जैनतस्वादर्श अंजलि से पानी सिर में डाल करके स्नान करना । तथा जिस फूलादिक में जीवों की संसक्ति का ज्ञान होवे तिन को परिहरे । ऐसे सर्व जगे जान लेना। ___चौथा कौकुच्य अतिचार-जिस के बोलने-करने से अपनी तथा औरों की चेतना काम क्रोधरूप हो जावे, तथा विरह की बात संयुक्त कथा, दोहा, साखी, चूत, झूलना, कवित्त, छन्द, परजराग, लोक, शृंगाररस की भरी हुई कथा कहनी । यह चौथा काममर्मकथन अतिचार है।
पांचमा संयुक्ताधिकरण अतिचार-ऊखल के साथ भूसल, हल के साथ फाला, गाड़ी से युग, धनुष से तीर इत्यादि । इहां श्रावक ने संयुक्त अधिकरण नहीं रखना, क्योंकि संयुक्त रखने से कोई ले लेवे, तो फिर ना नहीं करी जाती है, अरु जब अलग अलग होवे, तब उसको सुख से उत्तर दे सकेगा। अथ नवमे सामायिकवत का स्वरूप लिखते हैं। इन
पूर्वोक आठों व्रतों को तथा आत्मगुणों को सामायिकवत पुष्टिकारक अविरति कषाय में तादात्म्यभाव
से मिली हुई अनादि अशुद्धता रूप विभाव परिणति, तिस के अभ्यास को मिटाने के वास्ते अरु आत्मा का अनुभव करने के वास्ते तथा सहजानंद-स्वरूपरस को प्रगट करने के वास्ते यह नवमा शिक्षाबत है; अर्थात् शुद्ध अभ्यासरूप नवमा सामायिक व्रत लिखते हैं। दो घड़ी काल