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जैनतत्वादर्श हावभावादि का कथन यथा-" कर्णाटी सुरतोपचारकुशला, लाटी विदग्धा प्रिये" इत्यादि । तथा स्त्री के रूपोत्पादन, कुचकठिनकरण और योनिसंकोच, इत्यादि स्त्री सम्बन्धी विषयों का विचार करना स्त्रीकथा है । तथा देशकथा जैसे दक्षिण देश में अन्न, पानी अरु स्त्रियों से सम्भोग करना बहुत अच्छा है, इत्यादि । तथा पूर्वदेश में विचित्र वस्तु-गुड़, खाण्ड, शालि, मद्यादि प्रधान चीजें होती हैं। तथा उत्तर देश के लोग सूरमे है। वहां घोड़े बड़े शीघ्र चलनेवाले अरु दृढ़ होते हैं। और गेहूं प्रमुख धान्य बहुत होता है। तथा केसर, मीठी दाख, दाडिमादि वहां सुलभ है, इत्यादि । तथा पश्चिम देश में इंद्रियों को सुखकारी सुख स्पर्शवाले वस्त्र है, इत्यादि। तथा राजकथा-जैसे हमारा राजा बड़ा सूरमा है, वड़ा धनवान है, अश्वपति है, इत्यादि । जैसे यह चार अनुकूल कथा कही हैं। ऐसे ही चारों प्रतिकूल कथा भी जान लेनी । तथा ज्वरादि रोग अरु मार्ग का थकेवां, इन दोनों के विना संपूर्ण रात्रि सो रहना-निद्रा लेनी । इस पूर्वोक्त प्रमादाचरण को श्रावक वर्जे । तथा देशविशेष में भी प्रमाद न करना । तथा जिनमन्दिर में कामचेष्टा, हांसी, लड़ाई, हसना, थूकना, नींद लेना, चोर परदारिकादि की खोटी कथा करनी, चार प्रकार का आहार खाना, यह चौथा अनर्थदण्ड है। इस व्रत के भी पांच अतिचार हैं, सो कहते हैं।