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अष्टम परिच्छेद
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इत्यादि जो पापकारी काम है, तिन का बिना प्रयोजन अज्ञानपने से उपदेश करे, यह दूसरा पापकर्मोपदेश अनर्थदण्ड है ।
तीसरा हिंस्रप्रदान अनर्थदंड - हिंसाकारी वस्तु - गाड़ी, हल, शत्र, तलवारादि । अग्नि, मूसल, ऊखल, धनुष, तरकश, चाकू, छुरी, दात्री प्रमुख दूसरों को दक्षिणता बिना देवे सो हिसप्रदान अनर्थदण्ड है ।
चौथा प्रमादाचरण अनर्थदण्ड - कुतूहल से गीत, नाटक, तमाशा, मेला प्रमुख सुनने देखने जाना; इन्द्रियों के विषय का पोषण करना। यहां कुतूहल कहने से जिनयात्रा, संघ, अठाईमहोत्सव, रथयात्रा, तीर्थयात्रा, इन के देखने के वास्ते जावे, तो प्रमादाचरण नहीं। किंतु ये तो सम्यक्त्व पुष्टि के कारण हैं । तथा वात्स्यायनादिकों के कामशास्त्रों में अत्यन्त
गृद्धि – उनका वार २ अभ्यास करना । तथा जुआ खेलना,
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मद्य पीना, शिकार मारने जाना । तथा जलक्रीडा - तलाव प्रमुख में कूदना, जल उछालना । तथा वृक्ष की शाखा के साथ रस्सा बांध कर झूलना, हिंडोले झुलाना । तथा लाल, तीतर, बटेरे, कुक्कड़, मींढे, भैंसें, हाथी, बुलबुल, इन को आपस मैं लड़ाना । तथा अपने शत्रु के बेटे - पोते से वैर रखना, बैर लेना । तथा भक्तकथा — मांस, कुलमाष, मोदक, ओदनादि बहुत अच्छा भोजन है, जो खाते हैं, उनको बड़ा स्वाद आता है, अतः यह हम भी खायेंगे; इत्यादि कहना । तथा स्त्री कथा - स्त्रियों के पहनने तथा रूप और अंगप्रत्यंग