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अष्टम परिच्छेद
१३१ सो अनर्थदण्ड है।
३. रोगनिदाना-ध्यान-मेरे शरीर में किसी वक्त रोग होता है, वो न होवे तो अच्छा है। लोगों को पूछे कि अमुक रोग क्योंकर न होवे ? जब कोई कहे कि, अमुक अमुक अभक्ष्य वस्तु खाने से नहीं होता है, तव अभक्ष्य भी खा लेवे । तथा जब शरीर में रोग होवे, तव बहुत हाय २ शब्द करे, बहुत आरम्भ करे, घड़ी घड़ी में ज्योतिषी को पूछे कि मेरा रोग कब जायगा ! तथा वैद्य को बार बार पूछे। तथा मेरे ऊपर किसी ने जादू करा है, ऐसी शंका करे । अरु रोग दूर करने के वास्ते कुलविरुद्ध, धर्मविरुद्ध आचरण करे, तथा अभक्ष्य खाने में तत्पर होवे । रोग दूर करने के वास्ते औषधि, जड़ी, बूटी, मन्त्र, यन्त्र, तन्त्र सीखे तथा सीखे हुए किसी वक्त मेरे काम आवेंगे।
४. अग्रशोच नामा आतघ्यान-अनागत काल की चिंता करे कि, आवता वर्ष में यह विवाह करूंगा तथा ऐसी हाट, हवेली वनाऊंगा कि, जिस को देख कर सर्व लोग आश्चर्य करें। तथा अमुक क्षेत्र में बगीचा लगाना है, जिसके आगे सर्व बाग निकम्मे हो जावें, सर्व दुश्मनों की छाती जले । तथा अमुक वस्तु का मैंने सौदा करा है, सो वस्तु आगे को महंगी होजावे तो ठीक है, ताकि मुझे बहुत नफा मिल जावे । इत्यादि अनागत काल की अपेक्षा अनेक कुविकल्प शेखचिल्ली की