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जैनतत्त्वादर्श कामन, मोहन, वशीकरण करे, तिस को झूठा कलंक देवे, बलिदान देने के वास्ते त्रस जीव को मारे, यह सब कुछ अपने शत्रु के निग्रह के वास्ते करे तथा मूठ चला के मारा चाहे। परन्तु वो मूर्ख यह नहीं विचारता कि-जेकर तूं अपने दिल से सच्चा है, तो तुझे क्या फिकर है ! अरु जहां तक अगले के पुण्य का उदय है, तहां तक तूं यंत्र मन्त्र से उसका कुछ भी बुरा नहीं कर सकता है। ये सर्व संसारी जीव की मूर्खता है । यह सर्व अनर्थदण्ड हैं। तथा प्रथम अपनी आतुरता से मन में कुविकल्प करे कि, मेरे बैरी के कुल में अमुक जबरदस्त उत्पन्न हुआ है, सो मेरे को दुःख देवेगा । इस की राजदरबार में आबरू जावे, अरु दण्ड होवे, तो ठीक है। तथा इसका कोई छिद्र मिले तो सरकार में कह कर इस को गाम से निकलवा देउं, तो ठीक है। ऐसा विचार मूढ अज्ञानी करता है। तथा यहां चोर बहुत पड़ते हैं सो पकड़े जाय, फांसी दिये जाय, तो बड़ा अच्छा काम होवे । तथा अमुक पुरुष मेरे ऊपर हो कर चलता है, इस हरामजादे का कुछ बन्दोबस्त करना चाहिये, ताकि फिर कदापि सिर न उठावे । इत्यादि खोटे विकल्पों करके अनर्थदण्ड करे । क्योंकि किसी की चितवना से दूसरों का बिगाड़ नहीं होता है। जो कुछ होता है, सो तो सब पुण्य पाप के अधीन है। तो फिर तूं काहे को बिल्लीवत् मनोरथ करता है ! क्योंकि यह बिना प्रयोजन के पाप लगता है,