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अष्टम परिच्छेद
१२७ रहता है, आश्विन और कार्तिक मास में चार दिन मिश्र रहता है, मागसिर और पौष मास में तीन दिन मिश्र रहता है, माघ अरु फागुण मास में पांच प्रहर तक मिश्र रहता है, चैत्र अरु वैशाख मास में चार प्रहर तक मिश्र रहता है, ज्येष्ठ अरु आषाढ़ मास में तीन प्रहर मिश्र रहता है। पीछे अचित्त हो जाता है। सो मिश्र खावे, तो तीसरा अतिचार लगे। ___ चौथा दुष्पकौषधिमक्षण अतिचार-कछुक कच्चा, कछुक पक्का, जैसे सर्व जात के पोंख अर्थात् सिट्टे जो मक्की, जवार, बाजरे, गेहूं प्रमुख के बीजों से भरे हुए होते हैं। इन को अग्नि का संस्कार करने पर कछुक कच्चे पक्के हो जाने से अचित्त जान कर खावे, तो चौथा अतिचार लगे।
पांचमा तुच्छौषधिमक्षण अतिचार-तुच्छ नाम इहां असार का है। जिस के खाने से तृप्ति न होवे, तिस के खाने में पाप बहुत है, जैसे चना का फूल खावे, तथा बेर की गुठली में से गिरी निकाल के खावे । तथा वाल, समा, मूंग, चवला की फली खावे | इस के खानेसे प्रसंग दूषण भी लग जाते हैं, क्योंकि कोई वनस्पति अतिकोमल अवस्था में अनंतकाय भी होती है, तिस के खाने से अनंतकाय का ब्रतमंग हो जाता है।
आठमे अनर्थदण्डविरमण व्रत का स्वरूप लिखते हैं:। १. अर्थदण्ड उसको कहते हैं कि, जो अपने प्रयोजन के वास्ते