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अष्टम परिच्छेद
चरेंगी, भिल्लादिक लोग सुख से रहेंगे, अन्न कार्य अज्ञानपने से धर्म जान के करे। आग जीव मर जाते हैं, इस वास्ते आग नहीं लगानी चाहिये । बावड़ी, तलाव, सरोवर, इन का जल
१४. चौथा शोषणकर्म अपने खेत में देवे । जब
पानी को बहार काढ़े, तब लाखों जीव जल रहित तड़फ २ कर मर जाते हैं, इस वास्ते सर्व पानी शोषण न करना ।
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१५. पांचमा असतीपोषण कर्म - कुतुहल के वास्ते कुत्ते, विल्ले, हिंसक जीवों को पोषे । तथा दुष्ट भार्या अरु दुराचारी पुत्र का मोह से पोषण करे । साचा झूठा जाने नहीं, जो मन में आवे सो करे, तिन को राजी रक्खे । तथा बेचने के वास्ते दुराचारी दास दासी को पोधे । सो असतीकर्म कहिये । तथा माछी, कसाई, वागुरी, चमार प्रमुख बहु आरंभी जीवों के साथ व्यापार करे, तिन को द्रव्य तथा खरची प्रमुख देवे, यह भी दुष्ट जीवों का पोषण है। जेकर अनुकंपा करके. श्वान - कुत्ते प्रमुख किसी जीव को पुण्य जान कर देवे तो उसका निषेध नहीं । तथा अपने महल्ले में जो जीव होय, तिस की खबर लेनी पड़े, तथा अपने कुटुंब का पोषण करना पड़े, इस में पूर्वोक्त दोष नहीं। क्योंकि यह लोकनीतिः राजनीति का रास्ता है ।
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उपजेगा, इत्यादि लगाने से लाखों,
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अब इस सातमे भोगोपभोग व्रत के पांच अतिचार लिखते हैं: